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29 Jun 2023 · 2 min read

असमान शिक्षा केंद्र

विषय: विभिन्न प्रकार के शिक्षा केंद्र व उनके प्रभाव, मित्रो, हमलोग अक्सर शिक्षा क्षेत्र में सरकारी व निजी शिक्षा केंद्रों के विषय में चर्चा करते रहते है और अक्सर इस निष्कर्ष पर पहुंच जाते है कि यह व्यस्था सामाजिक व मानसिक विभाजन करती है और हम निजी केंद्रों को दोषी ठहराते है शिक्षा के अवमूल्यन व बा जारिकरण का। हम ये भी मान लेते है कि सरकारी शिक्षा केंद्रो में पढ़ने वाले छात्र, जीवन में अपने आप को कमतर समझते हैं। मै आप सभी को यही कुछ पांच हजार वर्ष पीछे ले जाना चाहता हूं, जिसकी हमलोग द्वापर या महाभारत काल या कृष्ण का काल भी का सकते है। जैसा कि हम जानते है शिक्षा केंद्रो का कार्य छात्रों को बौद्धिक , शारीरिक व सामाजिक रूप में जीवंत करना है। उस समय की व्यस्था में दो गुरुकुल थे, एक आश्रम गुरु संदीपनी का तथा दूसरा आश्रम गुरु द्रोणाचार्य का। संदीपनी आश्रम दान व भिक्षा से चलता था, वह सभी के लिए खुला था, कृष्ण व सुदामा दोनों की शिक्षा दीक्षा यही संपन्न हुई। दोनों की जीवन शैली बाद में अलग अलग हो गई, आप सभी को ज्ञात है। एक त्रिलोकीनाथ तो दूसरे के पास कुछ नहीं। परन्तु यह केवल उस शिक्षा का प्रभाव था कि दोनों त्याग व प्रेम की पराकाष्ठा बने, जीवन में वैभव व अभाव दोनों सहपाठियों को कभी विचलित नहीं किया, यानी धैर्य की परीसिमा। हम कृष्ण सुदामा को आज भी भाव विभोर हो जाते हैं, ये वह अनुदान वाली शिक्षा का सार है। दूसरी तरफ द्रोणाचार्य द्वारा प्रायोजित शिक्षा जिसका सारा ख़र्च उस समय का सबसे प्रभावशाली राजवंश, जिसको हम भरत वंश कहते है, करता था। वहा वैभव व तकनीक की कोई कमी नहीं थी और जिसकी देख रेख गंगापुत्र भीष्म खुद करते थे। एक से एक अर्जुन जैसे धनुर्धर, भीम व दुर्योधन जैसे गदाधारी इसी शिक्षण संस्थान से निकले। परन्तु ये सम्पूर्ण शिक्षा साबित ना हो सकी, क्योंकि यहां शिक्षा प्रतिद्वंदिता कि थी, आत्मबोध की थी, प्रदर्शन की थी । परिणास्वरूप सहपाठियों में बैमनुष्यता का भाव इस तरह होता है कि महाभारत में इसी शिक्षण संस्थान से निकले गुरुभाई एक दूसरे के रक्त के प्यासे होकर एक दूसरे का वध करते है और तो और सबसे प्रिय शिष्य के हाथों ही गुरु का वध कर दिया जाता है। गुरु व उस संस्थान को उसके किए की सजा मिली, क्योंकि वे सत्य, त्याग, समर्पण व मानवीय मूल्यों की शिक्षा ना देने के दोषी थे। और मजे कि बात उस युद्ध का निर्णय वहीं संदीपनी शिष्य कृष्ण करता है। मेरा अपना मानना है कि कमोवेश स्थितियां अभी भी वैसी ही है, आप भी जरा गौर करिएगा । एक प्रयास🙏🏻🇮🇳

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