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15 Jun 2023 · 1 min read

नारी

एक लाश,
पड़ी थी आंगन में,
रूदाली का क्रंदन था।
क्षमा याचना करती थी,
रोती थी बिलखती थी,
चली गई वो जननी,
जो श्रृजन की अवतारी थी।
सिर पटक कर अब रोए दुनिया,
दुनिया आज भिखारी थी।
हवा चली, कफ़न उड़ा,
तब पता चला वो नारी थी।

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