Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
13 Jun 2023 · 1 min read

विरह गीत

साजन मेरे मुझे बताओ, कैसे दीप जलाऊँ
घर आँगन है सूना मेरा, किस विधि सेज सजाऊँ

इंतिजार में तेरे साजन, लगा एक युग बीता
हाल हमारा वैसा समझो, जैसे विरहन सीता
सूनी सेज चिढ़ाए मुझको, अखियन अश्रु बहाऊँ
घर आँगन है सूना मेरा, किस विधि सेज सजाऊँ

वे सुवासित मिलन की घड़ियाँ, लगता साजन भूले
बौर धरे हैं अमवा महुआ, सरसो भी सब फूले
सौतन सी कोयलिया कूके, किसको यह बतलाऊँ
घर आँगन है सूना मेरा, किस विधि सेज सजाऊँ

तपती धरती सूखी नदियाँ, बदरा बस ललचाये
छाँव मिले ना मेरे दिल को, दुख बढ़ता ही जाए
जेठ दुपहरी अगन लगाए, इसको बुझा न पाऊँ
घर आँगन है सूना मेरा, किस विधि सेज सजाऊँ

सावन की घनघोर घटाएँ, करें रात अँधियारी
नाचे मोर पपीहा जब जब, आये याद तुम्हारी
चमक उठे चपला जब नभ में, मैं विरहन डर जाऊँ
घर आँगन है सूना मेरा, किस विधि सेज सजाऊँ

पाती भेजूँ कितनी तुमको, गयी कसम से हारी
भूल गए क्यों मुझको तुम हे, मेरे कृष्ण मुरारी
पिया मिलन की आस लिए मैं, गीत विरह के गाउँ
घर आँगन है सूना मेरा, किस विधि सेज सजाऊँ

नाथ सोनांचली

Loading...