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13 Jun 2023 · 1 min read

कोयल (बाल कविता)

कोयल वसन्त ऋतु की रानी,
सात सुरों की ज्ञाता है
गाती है जब अपनी धुन में,
मन मधुरस हो जाता है।।

दिखने में है काली लेकिन,
लगती कितनी भोली है
स्वर्ग लोक से सीखी इसने
मिसरी जैसी बोली है।1।

आम्र कुंज में उड़ती फिरती,
लुक छिप लुक छिप जाती है
पकड़ पास सब रखना चाहें
पर यह तो शर्माती है।।

भोरहरी में कूक सुनाकर
हमको रोज जगाती है
त्याग करों तुम बिस्तर का अब
बात बड़ी बतलाती है।2।

सुनकर बोली इसकी ही तो,
फूल सदा मुस्काते हैं
पंचम सुर का आहट पाकर,
राही भी रुक जाते हैं।।

काश! बोलते कोयल सा हम,
सबके प्यारे हो जाते
डाँट कभी ना हमको पड़ती,
चाहे जितना चिल्लाते।3।

नाथ सोनांचली

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