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13 Jun 2023 · 1 min read

दोहा छन्द

भड़की ज्वाला देश में, काप रहे हैं हाथ।
कैसे दीपक अब जले, बिना अमन के नाथ।।1

कोई भूखा सो रहा, तन भी पड़ा उघार।
माता जिस्म पिला रही, कोसों दूर बहार।।2

धर्म जाति में नर फसा, रचता रोज कुकर्म।
रक्त पिपासा बढ़ रही, तनिक नहीं है शर्म।।3

फूलों में अब हे सखे!, फीकी पड़ी सुगन्ध।
जनमानस में घुल रही, नित बारूदी गंध।।4

गूंँज रही हर पल यहाँ, माताओं की चीख।
बिंदिया रोकर कह रही, कब लेंगे हम सीख?।5

आज मनुजता है दुखी, दानवता मद-चूर।
नित्य क्लेश फैला रहे, आतंकी अतिक्रूर।।6

संसद में नेता लड़ें, बाहर खूनी खेल।
मुजरिम को इज्जत मिले, ऐशगाह है जेल।।7

राजनीति गंदी हुई, नेता आदमखोर।
श्वेत वसन में ये सभी, रंग बिरंगे चोर।।8

हर कोई मिलता यहाँ, पहने हुए नकाब।
किसको अब अच्छा कहें, किसको कहें खराब।।9

मनुज-मनुज में प्यार हो, फैले स्नेह अपार।
शील, विनय, संयम बिना, जीवन यह बेकार।।10

वसुधा सकल कुटुंब है, सोच करें साकार।
सिर्फ अमन औ’ चैन हो, हर क्षण करें प्रचार।।11

आशा औ उत्साह की, किरण बिखेरें आज।
मानवता फूले – फले, सदा रहे ऋतुराज।।12

अमन-चैन के लिए अब, हों सब एकाकार।
नेह – दीप घर घर जले, सपने हों साकार।।13

नाथ सोनांचली

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