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13 Jun 2023 · 3 min read

समझना है ज़रूरी

इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं कि संसार का सबसे समृद्ध, सौ प्रतिशत पवित्र और सुलझा हुआ धर्म इस्लाम है, जिसकी विशेषता ही उसका सादा और सरल होना है, जिसे दुर्भाग्य वश उसके रहनुमाओं ने ही जटिल बना दिया है, इधर मैं काफी समय से देख रही हूं कि सोशल मीडिया पर इस्लाम धर्म से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियां बहुत संख्या में लोगों द्वारा शेयर की जा रही है जो कि वास्तव में एक अच्छी शुरुआत है, निश्चित ही इसके माध्यम से मुस्लिम वर्ग के लोगों के साथ.. साथ गैर मुस्लिम वर्ग के लोगों को भी इस्लाम संबंधी जानकारी प्राप्त होंगी, लेकिन इसके साथ ही प्रश्न यह उठता है कि जो शिक्षा हमें इस्लाम ने हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के माध्यम से प्रदान की गई है ,उस पर हम कितना अमल कर रहे हैं.? क्यों हम ऐसी बातों को बढ़ावा प्रदान करते हैं, जो हमारे धर्म की छवि को धूमिल करती है, कितनी दुखद बात है कि आज इस्लाम और आतंकवाद दोनों को एक ही नज़र से देखा जा रहा है, आपस में ही मुसलमान…. मुसलमान का खून बहा रहा है, आज स्थिति ये है कि इस्लाम के अंतर्गत कोई कहता है कि मैं सुंनी हूं, कोई कहता है कि मैं वहाबी हूं, कोई कहता है कि मैं देवबंदी हूं तो कोई कहता है कि मैं आले शरीयत हूं। कैसी विडंबना है कि कोई ये नहीं कहता कि मैं सिर्फ एक मुसलमान हूं, आखिर क्यों.? ऐसी मानसिकता, ऐसी ऊंच नीच की भावना इस्लाम धर्म में कहीं नहीं, फिर ये स्वयं को मुसलमान से पहले सुंनी, शिया, वहाबी, देवबंदी आदि कहने वाले लोग कौन से धर्म की रहनुमाई कर रहे हैं.? मेरी समझ से पूर्णता परे है, आज के युग का इंसान धार्मिक से ज्यादा व्यवसायी हो गया है और इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं कि आज धर्म से अघिक धन एकत्र करने वाला व्यवसाय कोई और नहीं, आज एक मुसलमान असंख्य जातियों में विभक्त है क्यों.? क्या इस्लाम जातिभेद भाव को बढ़ावा देता है.? क्या इस्लाम मुसलमानो को दरगाहों पर माथा टेकने और झोली फैला कर दुआएं मांगने की इजाज़त देता है.? मस्जिदों और दरगाहों को संगेमरमर से सजाने की इजाज़त क्या इस्लाम देता है.? एक उच्च जाति के मुसलमान को दूसरे निम्न जाति के मुसलमान को तिरस्कृत करने की इजाज़त क्या इस्लाम धर्म देता है.? नही बिल्कुल नहीं, ऐसी वाहियात बातों की इस्लाम में कोई जगह नहीं है, आज आवश्कता है तो हज़रत मुहम्मद साहब के आखिरी खुतबे को याद करने की, वहीं मोहम्मद साहब जिन्होंने कहा कि वह व्यक्ति कदापि मुसलमान कहलाने का अधिकारी नहीं, जिसका पड़ोसी भूखा सोये, ज्ञात हो चाहें वह पड़ोसी किसी भी धर्म से संबंध रखता हो। वहीं मोहम्मद साहब जिन्होंने कहा कि वह व्यक्ति मुसलमान नहीं हो सकता जो किसी गैर मुस्लिम पर किसी भी प्रकार का अत्याचार करे यदि किसी ने ऐसा किया तो अल्लाह की अदालत में अर्थात कयामत के दिन स्वयं उस गैर मुस्लिम की वकालत करेंगें। वहीं मोहम्मद साहब जिन्होंने अपने ऊपर कूड़ा फेंकने वाली वृद्ध महिला के गलत आचरण का जबाब सदैव मुस्कुरा कर दिया, इतना ही नहीं उस महिला के रोगी होने पर आप उसकी खैरीयत लेने गए। वही मोहम्मद साहब जिन्होंने कहा कि कभी भी किसी धर्म का मज़ाक न बनाओ। वहीं मोहम्मद साहब जिन्होंने लड़ाई के नियम और कानून निर्धारित किए कि अपनी सुरक्षा के लिए हथियार उठाओ, बच्चे, बूढ़े और महिलाओं पर हमला करना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं, ऐसी थीं हमारे प्रवर्तक मोहम्मद साहब की शिक्षाएं, तब ऐसी स्थिति में मुसलमान होकर दूसरे मुसलमान भाई के साथ भेदभाव घृणा का वातावरण तैयार करना, एक दूसरे का खून बहाना, दूसरे धर्मों के समक्ष अपने धर्म की गलत छवि पेश करना, क्या ये सब इस्लाम के विरूद्ध कृत्य नहीं है.? क्या यह क्षमा योग्य है.?
अभी भी समय है भारतीय मुसलमान समय रहते सचेत हो जाये और इस्लाम की छवि को धूमिल करने वाली बुराइयों का त्याग करें और एक सच्चा मुसलमान बनने का सच्चे मन से प्रयास करें, धर्म कोई भी बुरा नहीं होता बस इंसान बुरा होता है जो धर्म की आड़ में अपनी दूषित मानसिकता को पूरा करता है, हमारा आचरण, हमारा व्यवहार ऐसा होना चाहिए कि लोग देख कर ही हमारे इस्लाम धर्म की ओर आकर्षित हो न कि उसके झगड़ालू और हिंसात्मक प्रवृत्ति को देख उसे घृणास्पद दृष्टि से देखें, अब देखना यह है कि हम समय रहते क्या निर्णय लेते हैं और स्वयं में कितना परिवर्तन लाते हैं ।
डॉ. फौजिया नसीम शाद……

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