बदलने को तो इन आंखों ने मंजर ही बदल डाले
बदलने को तो इन आंखों ने मंजर ही बदल डाले
हुए थे कत्ल जिनसे हम वो खंजर ही बदल डाले
बड़े बेबस खड़े पर्वत यही दिन रात सोचे हैं
भला कैसे क्यूं नदियों ने समंदर ही बदल डाले
✍️ हरवंश हृदय