समय की गोद
समय की गोद कभी छोटी नहीं पड़ती,
अनगिनत पलों को सहेजे, समेटे हुए,
कोई पल छिटक कर बाहर नहीं आता, हां, कभी -कभी
बाहर झांकता अवश्य है,
कोई -कोई बचपन की भोली मुस्कान सा मुस्कुराता लगता है,
कोई जाने कितना बोझ कांधों पर उठाए ,थका -थका सा,
कोई मासूम ,कोई उन्नत, गर्वीला सा,
कोई संतुष्ट, कोई अभावों में घुटता सा,
कोई किसी अल्हड़ किशोरी सा इतराता,
कोई किसी समाधिस्थ गंभीर योगी सा,
हर एक पल की अलहदा कहानी है,
इन्हीं दास्तानों का नाम जिंदगानी है।