चलो ! ऐसा करते हैं
रिश्ते, रिवाज़, उसूल और समाज,
इन सबसे परे -चलो ऐसा करते हैं –
दिल के जज़्बातों को एहमियत देते हैं।
औरों की फ़िक्र कभी फ़िर करेंगे,
ख़ुद को खुश करने का, अरमान आज रखते हैं।
कोई भी नक्श- ए-कदम मिले ना मिले,
आज अपनी राहें ख़ुद बना लेते हैं।
सफ़र में मंजिल मिले ना मिले,
चलो, रहगुज़र को ही मंज़िल बना लेते हैं।
ताउम्र ख़ुशबुएं बांटते रहे अब –
चलो! अपने घर को फूलों से सजा लेते हैं।