किश्तें
किश्तों में हमने हासिल की या किश्तों में जिंदगी खर्च दी?
आग़ाज़ से ताइन्तहा, ये कशमकश जा़री रही।
सबसे पहली किश्त भोले बचपने ने चुकता की –
जब,
खर्च करके बचपना, फ़र्ज की चादर ओढ़ ली,
किश्त दर किश्त -फ़र्ज की शकलों में दी जाती रही। हासिल सुकून ना हो सका,
बेचैन ,बेबस एक सफ़र था, जो कि बस! ज़ारी रहा,
किस शक्ल में दी जाएगी अब आख़िरी किश्त क्या पता,
फ़िर तय करेंगे किश्तों में जिंदगी मिली के ख़र्च दी।