बहुत कुछ बाकी है
अभी मेरा क़त्ल बाकी है मेरे क़ातिल, के,
जिंदगी की प्यास मुझमें अभी बाकी है,
दिल पे एक ख़ंजर शिद्दत से चला ज़ालिम, के,
तेरे ख़ंजर में कितनी धार अभी बाकी है।
तू मेरे सब्र की -जितनी तू चाहे आज़माइश भी कर ले, के,
आंधियों में बलते इस सुकून के चराग़ में –
उम्मीदों, हसरतों का तेल अभी बाकी है।
अभी जाम होठों से छीन ना साकी, के,
सागर में मय, प्यास होठों पे बाकी है।
शब -ए-इंतजार इस तरह से ढली, के,
आँखों में तेरा इंतज़ार अभी बाकी है।
दोस्त की इनायत के ज़ख्म नहीं भरते, और,
रक़ीब की अदावत का दौर अभी बाकी है।
चलते -चलते पाँव से लहू रिस रहा है, और,
सामने एक रेग़ज़ार पार करना बाकी है।
मेरी पारसाई पर उसको है शुबहा, के,
उसके ख़ुदा की गवाही अभी बाकी है, और,
उसकी बेवफ़ाई का मुझको यकीं है, के,
शुबहे की कोई गुंजाइश कहाँ बाकी है?