}}}जैहिंद के नौ दोहे{{{
जैहिंद के नौ दोहे
// दिनेश एल० “जैहिंद”
बात कहे जैहिंद कुछ,
करो जरा-सा गौर!
स्त्री कोई भोजन नहीं,
मुँह में डालो कौर!!
नारी से नर है जना,
नरहिं हुआ चंडाल!
आत्मा पुरुषों की मरी,
शेष रहा कंकाल!!
अस्मिता का सवाल है,
बढ़ा हुआ है मर्ज!
नारी जब बेबस हुई,
कौन सुनेगा दर्द!!
मान न बेटी का रहा,
पल-पल चिंता खाय!
अगर सुधार नहीं हुआ,
दोषी नर कहलाय!!
हवस एक कारण यहाँ,
कैसे समझे दर्द!
चक्षुओं में हया नहीं
मर्द हुआ खुदगर्ज़!!
माथे पर है बल पड़ा,
मन तो हुआ उदास!
काया सूखी जा रही,
टँगी हुई हैं साँस!!
पुरुषों के ही कारणे,
नारी भई निराश!
आज नहीं जो चेतते,
मर्दो का है नाश!!
जब जब रोए नारि ये,
लगे पुरुष को हाय!
पुरुष सहारा एक है,
भला कहाँ वो जाय!!
अब तो पुरुषो चेत लो,
तिरिया तेरी काल!
अँखियन तरेर देख लो,
नाहिं अब है मजाल!!
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दिनेश एल० “जैहिंद”
07/12/2019