Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
16 May 2023 · 1 min read

मैं अपवाद कवि अभी जिन।था हूं

मैं अपवाद कवि अभी जीवित हूं

मानवता नहीं मरने दूं

सच आंखों की पट्टी से

खुमारी का रूप उतारू

मैं जनता कवि अभी जीवित हूं

जन-जन की मैं बात करूं

उनकी आंखों के अश्रु को

शासन के आंखों का कांटा बनूं

मैं लुंठित कवि अभी जीवित हूं

वीरता की न बात करूँ

हमला करा के शासन पाना

सत्य का मैं फिर रोड़ा बनूँ

मैं सुरेखा कवि अभी जीवित हूं

सुरेख्य सौम्य की बात करूं

बहरूपिया लोकतंत्र का मैं

आंखों देखा बयान करूं

मैं कोविड कवि अभी जीवित हूं

चलते मरते लोगों की बात करूं

भूख चलन से मरे है लोग

क्यों शासन मानवता मैं बात करूं

मैं अपवाद कवि अभी जीवित हूं

वीरता की डिंगे हांके

वे आज कवि नहीं बोले हैं

सच पैसों का बना गुलाम

मुर्गा मुर्गी हरे हरे

मैं अपवाद कवि अभी जीवित हूं।

Loading...