Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
15 May 2023 · 1 min read

आदमी चिकना घड़ा है...

आदमी चिकना घड़ा है….

वक्त ये कितना कड़ा है।
किस कदर तनकर खड़ा है।

कौन किससे क्या कहे अब,
बंद मुँह ताला जड़ा है।

सत्य लुंठित सकपकाया,
एक कोने में पड़ा है।

चल रहा है चाल सरपट,
झूठ पैरों पर खड़ा है।

देख तो ये ढीठ कितना,
बात पर अपनी अड़ा है।

बात ऐसी कुछ नहीं थी,
बेवजह ही लड़ पड़ा है।

शोक-निमग्न सारा चमन,
पुष्प असमय ही झड़ा है।

होता नहीं कुछ भी असर,
आदमी चिकना घड़ा है।

देख रोता आज जग को,
दर्द अपना हँस पड़ा है।

इस दहलती जिंदगी में,
हौसला सबसे बड़ा है।

होश में ‘सीमा’ न कोई,
बिन पिए जग बेबड़ा है।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Loading...