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7 Apr 2023 · 1 min read

गरीब

ढूंढता है रात भर,
एक छत खुले आकाश में,
कानों में बजती अनवरत,
शहनाईयां बस आस की,
और बीनता है दौड़ सिक्के,
तारों की बारात में ॥

कुछ नहीं दीखता
सपने में गरीब को,
रोटियाँ सूखी हुईं,
नमक फीका दाल में,
और थोड़ी सी भी नहीं,
सब्जी है नसीब को,
कोठरों में आँखों के
सपने कहाँ गरीब के ॥

रात-दिन है जोतता,
सेंकता कर सौ जतन,
छूटतीं फिर भी मगर,
हाथों से उसके रोटियाँ,
कोसना ही हाथ में,
चाल को नसीब की ॥

@दीपक कुमार श्रीवास्तव “नील पदम्”

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