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21 Jan 2023 · 1 min read

मोह मोह का जाल है, भरे माल कंगाल l

मोह मोह का जाल है, भरे माल कंगाल l
क्यों भरता जंजाल है, जब तू कल कंकाल ll

रचा, पाया, लिया, दिया, सब है मायाजाल l
न मांस और न सांस है, बचा रहा कंकाल ll

अरविन्द व्यास “प्यास”

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