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12 Jan 2023 · 1 min read

ज़िन्दगी गुजर गई मगर गुजारा न हुआ

चाहा बहुत हमने मगर इशारा न हुआ
हमसे होकर निकल गए हमारा न हुआ

ताकते रहते है आज भी उस राह को हम
जिस राह में आना उनका दोबारा न हुआ

चल तो दिए थे हम वक्त की बाँह थामे
ज़िन्दगी गुजर गई मगर गुजारा न हुआ

कैसे कहूँ कि वो रखते थे इत्तिफाक हमसे
इत्तिफाकन ये काम उनको गँवारा न हुआ

हसरतों के दीप में जली यूँ इन्तजार की लौ
दिल की दहलिज से दर्द का किनारा न हुआ

जीने की खाते थे कसम वो “प्रेम” से कभी
जान आँखो में रही मगर वो नज़ारा न हुआ॥

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