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15 Dec 2022 · 1 min read

जाते हो किसलिए

यूँ बेरुखी दिखा के,सताते हो किसलिए
नज़रें मिलाके नज़रें चुराते हो किसलिए

क्या ख़ौफ़ लग रहा है उजाले से आपको
दिल में दिया जला के,बुझाते हो किसलिए

तनहा न कट सकेगा,सफर जिंदगी का अब
आके करीब दूर, यूँ जाते हो किसलिए

दामन छुड़ाया आपने मुझसे ख़ुशी- ख़ुशी
करके दिखावा प्यार ,जताते हो किसलिए

दिल तोड़ ही रहे हो ,समझ मुझको अजनबी
झूठी अदा दिखाके ,रिझाते हो किसलिए

तुम सामने ही गैर ,की बाहों में जा रहे
फिर पास में सुधा को,बुलाते हो किसलिए

डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
वाराणसी ,©®
7/12/2022

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