Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
13 Dec 2022 · 1 min read

शीर्षक:ये घड़ी या वो घड़ी

▪️▪️ये घड़ी,या वो घड़ी▪️▪️

ये घड़ी जो है ना
प्रेम का भी रंग बदल देती हैं
साथ जीने की कसमें खाने वालों
का भी समय बदल देती हैं
घड़ी हैं साहब समय बदलती हैं

जिसने भी घड़ी दी,समय उसका भी बदला
घड़ी के तोफे ने ही दर्द दिया और
समय को बिन आहट के ही बदल दिया
ये घड़ी जो हैं ना
प्रेम का भी रंग बदल देती हैं

आज ये घड़ी ही दुश्मन सी दिखती हैं
हर वक्त बस उस वक्त की याद दिलाती हैं
टकटक कर चलती मानो साँसे कम करती हैं
ये घड़ी जो है ना
प्रेम का भी रंग बदल देती हैं

ए उपहार में घड़ी देने वाले काश
पलो से अपने कुछ घड़ी समय दिया होता
तो शायद ये समय यूँ न बदला होता
ये घड़ी जो है ना
प्रेम का भी रंग बदल देती हैं

Loading...