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17 Nov 2022 · 1 min read

Gazal

जब हिज्र ए गम ही मुकद्दर है क्या किया जाए।
जब सारा शहर ही पत्थर है क्या किया जाए।

साथ में भी मेरे रहता है मुनाफिक की तरह।
वहीं रहजन ही जब रहबर है क्या किया जाए।

तमाम उम्र खंगाला है जिसने दरिया को।
तलाश उसको समंदर है क्या किया जाए।

वह दिन में बांट रहा था जो आशियाने को।
नज़र ए आतिश किया छप्पर है क्या किया जाए।

भाईचारे की अब उम्मीद नहीं है तुमसे।
नफरती लहजा लबों पर है क्या किया जाए।

सगीर हट नही सकता मैं जिम्मेदारी से।
तमाम बोझ भी सर पर है क्या किया जाए।

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