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25 Oct 2022 · 1 min read

दिल की बात

बुरा कभी सोचा नहीं
सबके लिए अच्छा ही सोचता हूं मैं
देखता हूं किसी को उदास तो
उसके दुख में शरीक हो जाता हूं मैं

आज सादा किसी को पसंद नहीं
ये भी जानता हूं मैं
लेकिन इसके लिए सादगी छोड़ दूं
ये तो नहीं कर पाऊंगा मैं

जो चीज़ अच्छी लगती नहीं
उसे अच्छा कह न पाऊंगा मैं
झूठ बोलकर वो मिल भी जाए
फिर भी झूठ न बोल पाऊंगा मैं

नहीं बात करता ज़्यादा मैं कभी
बचपन से ऐसा ही हूं मैं
जाने क्यों भ्रांति फैलाई किसी ने
जान लो, घमंडी नहीं हूं मैं

दोस्ती आदमी देखकर करता हूं
उसकी हैसियत देखकर नहीं
बना लेता हूं दिल से अपना उसे
जो भा जाता है दिल को कहीं

जो कहता है कोई मुझसे
उसे ही सच मानता हूं मैं
क्योंकि साफ दिल है सभी का
आज भी यही मानता हूं मैं

किसी को धोखा देता नहीं
दूसरों से भी यही चाहता हूं मैं
करता है चालाकियां जो मुझसे
उससे मुंह मोड़ जाता हूं मैं

पढ़ लेता हूं चेहरा देखकर
लेकिन मैं किसी से कुछ कहता नहीं
बढ़ जाए दुर्भावना हद से अगर
फिर मैं किसी को छोड़ता नहीं।

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