Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
9 Oct 2022 · 1 min read

शरद पूर्णिमा

यह शरद पूर्णिमा का शशांक,
खिल गया तीव्र लेकर उजास।

पावन बृजभूमि अधीर हुई,
यमुना की लहरों में हलचल।
हो गया दृश्य रमणीक रम्य
खिल उठे सरोवर के शतदल।

गिर रही मरीचि सुधा -भू -पर,
बुझ रही धरा की रिक्त प्यास।

मोहन सिर मोर मुकुट सुन्दर,
अधरों पर वेणु रंग श्यामल।
श्रंगार करें सजती सखियाँ
पैंरों में बाँध रही पायल।

गोपियाँ अधिक हैं कृष्ण एक
मन में है सबके एक आस।

गिरधर ने मन की आस पढ़ी
सखियों सम रूप रखे अपने।
हो गए सभी के संग कृष्ण
निधिवन में रास लगे रचने।

राधा संग नृत्य करे कान्हा,
कितना अनुपम यह महारास।

खिल रही चंद्र की घटा रुचिर,
ब्रम्हांड प्रभावित गिरधर से।
है महाप्रीत की प्रेम निशा
अमृत्व बरसता अम्बर से।

गुंजायमान मुरली की धुन,
कर रही सिक्त हर साँस साँस।

देवो में बजी दुंदभी है,
मेघो में छिड़ा घोर गर्जन।
सब जीव जंतु व वन उपवन,
कर धन्य हुए लीला दर्शन।

सोलह कलाओ से चंद्र युक्त
कर रहा अवनि भर में प्रकाश।

बृजभूमि में रास रचो प्रभु ने
कर दिए धन्य सब पुण्य धाम।
आते हैं भक्त अनेक यहाँ,
नतमस्तक हो करते प्रणाम।

देते इस अपने सेवक को,
निज चरणों में नटवर निवास।

अभिनव मिश्र अदम्य

Loading...