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15 Sep 2022 · 1 min read

ग़ज़ल- मयखाना लिये बैठा हूं

#ग़ज़ल- #मयखाना लिये बैठा हूँ

मैं अपने हाथ में पैमाना लिये बैठा हूँ।
सुर्ख गुलाब का संग नज़राना लिये बैठा हूँ।।

कैसे बचोगे तुम भी अब तीरे नज़र से।
मैं नज़रों में ही मयखाना लिये बैठा हूँ।।

सोचा था कि प्यार को महसूस करेंगे ऐसे।
शमा के सामने परवाना लिये बैठा हूँ।।

वो कहते है कि मैं पीता नहीं हूं ज़रा भी।
लेकिन संग हुश्न का मयखाना लिये बैठा हूँ।।

ख़ता क्या हुई ये ‘#राना’ जान न पाये लेकिन।
फिर भी प्यार का हरजाना लिये बैठा हूँ।
क्***

© #राजीव_नामदेव #राना_लिधौरी #टीकमगढ़
संपादक-“आकांक्षा” हिंदी पत्रिका
संपादक- ‘अनुश्रुति’ बुंदेली पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email – ranalidhori@gmail.com
*( राना का नज़राना (ग़ज़ल संग्रह-2015)- राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ के ग़ज़ल-85 पेज-93 से साभार

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