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12 Sep 2022 · 1 min read

प्रीत न कोई

****** प्रीत न कोई ******
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मेरे मन मे मीत न कोई,
जागी अब तक प्रीत न कोई।

हर दम हारा जीत न पाया,
मिलती हमको जीत न कोई।

समझे कोई प्रेम न आशा,
प्यारी जग में रीत न कोई।

नगमा मधुरिम भी न सुनाया,
मीठा गाया गीत न कोई।

मनसीरत तो है ढूंढ न पाया,
यारों जैसा शीत न कोई।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

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