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15 Jul 2022 · 1 min read

"सावन-संदेश"

नवकोपल, कलियों के सँग, इठलाते हैं,
मदमाते भँवरे, सँगीत, सुनाते हैं।
अहा, घिरी वह, फिर देखो, घनघोर घटा,
मदन मोर, मनमोहक नृत्य दिखाते हैं।।

आई कुछ कहने, प्रातः अरुणाई भी,
छाई, फिर से उपवन मेँ, तरुणाई भी।
यौवन का उल्लास, धरा के कण-कण मेँ,
हुई सुगंधित पुरवा, कुछ बौराई सी।।

रँग-बिरँगे पुष्प हँसे, उन्मत्त दिखे,
कल क्या हो, की चिंता से भी मुक्त लगे।
आभा दिखी, तितलियों की भी है अनुपम,
कर कलरव, पक्षीगण, सब सँयुक्त हँसे।

सरिता, सतत, समर्पण का, सम्मान रहे,
पर्वत की, ऊँचाई का भी, मान रहे।
कभी न मानो हार, भले कँटक कितने,
साहस का जीवन मेँ, हर पल साथ रहे l

मौन न रहना, प्रेमी सँग, कुछ कहना भी,
सावन प्रेम-प्रतीक, प्रकृति का गहना भी।
“आशा” पूरित रहे, सदा जीवन सबका,
रास आ गया ज्यों, मिलजुलकर रहना भी।।

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रचयिता
Dr.asha kumar rastogiM.D.(Medicine), DTCD
Ex.Senior Consultant Physician, district hospital, Moradabad.
Presently working as Consultant Physician and Cardiologist,
sri Dwarika hospital, near sbi Muhamdi, dist Lakhimpur kheri
U.P. 262804 M.9415559964

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