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13 Jul 2022 · 1 min read

✍️ मैं काश हो गया..✍️

✍️ मैं काश हो गया..✍️
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वो जवानी का शोर परेशानी में खामोश हो गया
लापता हूं खुद से मैं खुद के लिये तलाश हो गया

गुमशुदा चेहरा मेरा मिटा होगा शहर के नक़्श से
मैं तो जिंदा हूं शायद उनके नजर में लाश हो गया

हम भी ख़तीब थे जुबाँ पे मुसलसल शोले रहते थे
अब मेरा रक़ीब मैं मेरे ख़ामोशी पे वो खुश हो गया

सुनने वाले कम ही मिले,हमें सुनाने तो जग आया
बोलती जुबाँ पे ताले लगे देखके मैं बे-होश हो गया

उम्र के सारे तजुर्बे कम पड़ गये एक ही उड़ान में..
ख्वाइशों की उधेड़बुन में खुद ही मैं काश हो गया..
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©✍️ ~’अशांत’ शेखर✍️
13/07/2022

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