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25 Jun 2022 · 1 min read

'परिवर्तन'

‘परिवर्तन’
कभी भरा दिखता था जो,
निकला वो, खाली बरतन।
सोच बदलती है मानव की,
बदले प्रतिपल यह मन।।

नया जोश, ले स्वप्न नवल,
आ गया, दहकता यौवन।
वृद्धावस्था लगी पूछने,
कहाँ गया, वो बचपन।।

सरिता ठहरी कहाँ,
सदा बहती रहती है, अविरल।
कर अशुद्धियाँ दूर,
रखे निर्मल पर, वह अपना जल।।

बीज, बन गया वृक्ष,
लदा पत्तों, फूलों से तन अब।
धन्य हो गया पथिक,
दूर पल भर मेँ हुई थकन सब।।

बरस, मेघ हैं कर देते,
पल मेँ ही मानो, जल-थल।
आज वहाँ हरियाली,
जो कल तक था, एक मरुस्थल।।

“आशा”आज, निराशा थी कल,
समय बदलता हर पल।
आह जहाँ थी, कल तक,
क्यों है आज वहाँ, ध्वनि करतल।।

जीव नश्वर ,है ब्रह्म शाश्वत,
अकथ कथा है जीवन।
सार समझने बैठे ज्ञानी,
होते वो भी हतप्रभ।

धरा घूमती स्वयं, धुरी पर,
निश्चित है परिवर्तन।
चार दिनों का मेला,
क्यों ना हँसी-ख़ुशी जी, रे मन..!

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रचयिता
Dr.asha kumar rastogi
M.D.(Medicine), DTCD
Ex.Senior Consultant Physician, district hospital, Moradabad.
Presently working as Consultant Physician and Cardiologist, sri Dwarika hospital, near sbi Muhamdi, dist Lakhimpur kheri U.P. 262804 M.9415559964

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