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5 Jun 2022 · 1 min read

✍️वो पलाश के फूल...!✍️

✍️वो पलाश के फूल…!✍️
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वो पलाश के फूल…!
गहरे केसरी लाल
जैसे जंगल में हो आग

वो पलाश के फूल…!
फ़ागुन का संकेत दर्शाते हैं
बसंत का एहसास जगाते है

वो पलाश के फूल…!
थोड़ी हलकी तपती
नर्म धुप में भी
गुजरते जाड़ो की
छांव का आसरा देते है

वो पलाश के फूल…!
मौसम को ख़ुशनुमा करते है,
सृष्टि में कुछ
अज़ीब सी रंगत लाते है

वो पलाश के फूल…!
होली के रंगों की
बहार लाते है
पूरी धरती को अपने
रंग में रंग जाते है

वो पलाश के फूल…!
खाली खाली मन में
तुम्हारी धुंधली यादो के
गहरे रंग भर जाते है
उस वक़्त जो साथ गुजरे
वो पल यूँही छोड़ जाते है..

वो पलाश के फूल…!
अपनी रंगों की कुछ बुँदे
मेरे अश्को में भीगो जाते है
मेरे कोरे कागज़ पर
उस सियाही से
विरह की एक अधूरी
कहानी लिख जाते है…

वो पलाश के फूल…!
मौसम बदलते ही
अब मुरझा गये है…
मेरी तन्हाईयों को
भीड़ में उलझा गये है

वो पलाश के फूल…!
उसकी पंखुड़िया
झड़कर अब सुख गयी है
मेरे उदास जिंदगी की तरह….!

वो पलाश के फूल…!
फिर अगली बहार आयेंगे
मेरी कोशिश रहेगी
फिर दोनों के बीच करार हो,
अपने गलती का इक़रार हो,
एक नयी राह जिंदगी के लिए,
ये सिलसिला यही ख़त्म हो…

वो पलाश के फूल…!
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✍️”अशांत”शेखर✍️
05/06/2022

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