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14 May 2022 · 1 min read

तप रहे हैं दिन घनेरे / (तपन का नवगीत)

भाप बहती
है सबेरे,
तप रहे हैं
दिन घनेरे ।

आँख तपती,
कान तपते,
तप रही है
वात बहती ।
साँझ तपती,
याम तपते,
तप रही है
रात ढहती ।

चाँद ने
नैना तरेरे ।
तप रहे हैं
दिन घनेरे ।

पत्तियों के
उजड़ने से
तप रही
संपूर्ण वन्या ।
मंद भावों
की तपन से
तप रही है
धान्य-धन्या ।

जल रहे हैं
घर,बसेरे ।
तप रहे हैं
दिन घनेरे ।

तप रहे
नक्षत्र सारे,
कुण्डली के
मेल तपते,
लग्न,भाँवर
की तपन से
शुभाशुभ के
खेल तपते ।

दग्ध हैं अब
सात फेरे ।
तप रहे हैं
दिन घनेरे ।

— ईश्वर दयाल गोस्वामी

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