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12 Feb 2022 · 3 min read

धर्मपथ : दिसंबर 2021

धर्मपथ दिसंबर 2021 अंक 44
संपादक :डॉ शिव कुमार पांडेय
सह संपादक: प्रीति तिवारी
प्रकाशक :उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड फेडरेशन थियोसॉफिकल सोसायटी
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समीक्षक: रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उ. प्र.) मोबाइल 99976 15451
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धर्मपथ वैचारिक पत्रिका है । विपश्यना, ओम तथा परम तत्व की अवधारणा- यह तीन लेख इसमें प्रकाशित हुए हैं । इन लेखों की विषय-वस्तु ही बता रही है कि पत्रिका गंभीर पाठकों के लिए है।
विपश्यना को विस्तार से समझाया गया है । लेखक शिव कुमार पांडेय लिखते हैं – “विपश्यना की पद्धति को थेरावाद बौद्ध संप्रदाय में विशेष मान्यता दी जाती है । पाली भाषा में इसे विपस्सना कहा जाता है। इसका अर्थ है -खोलना ,मुक्त होना ,बंधन काटना आदि-आदि। इस पद्धति से अपने तनाव ,नकारात्मकता ,दुख आदि की मानसिक ग्रंथियों को ढीला कर सकते हैं। शुद्ध वैज्ञानिक पद्धति है।”(प्रष्ठ 4)
विपश्यना के चार आयाम हैं। एक कायानुपश्यना जिसमें काया को देखा जाता है और महसूस किया जाता है कि यह नाशवान है । दूसरा वेदनानुपश्यना– इसमें शरीर के भीतर जो भी वेदना अर्थात संवेदनाएं उठती हैं उनको देखा जाता है। चित्तानुपश्यना में थोड़ा आगे बढ़कर साधक अपनी सांसो पर ध्यान एकत्र करता है ।इसे ही आनापान कहते हैं । चौथा आयाम धम्मानुपश्यना का है । इसमें साधक समझ जाता है कि चित्त में जो कुछ भी संवेदना प्रकट हो रही है ,वह भी नाशवान है । इसी क्रम में अंततः विपश्यना के द्वारा व्यक्ति को बोधि प्राप्त हो जाती है। लेख सरल भाषा में बढ़िया तरीके से विपश्यना साधना के प्रति ध्यान आकृष्ट करता है ।
लेखक उमा शंकर पांडे ने ओम के संबंध में विस्तृत लेख लिखा है। मैडम ब्लेवेट्सकी की पुस्तक के संदर्भ में ओम की व्याख्या करते हुए लेखक ने लिखा है “ओम पर ध्यान या ओम के अर्थ का ज्ञान ही सही मुक्ति या सही अमरत्व प्राप्त करा सकता है …इसलिए वह जो ओम पर ध्यान करता है ,मनुष्य में आत्मा पर ध्यान करता है।” (प्रष्ठ 17)
लेखक ने लिखा है कि “ओम का गुण श्वसन या साँस की लंबाई को छोटा करने का है ।”(पृष्ठ 19-20)
लेखक आगे लिखते हैं “वाह्य-श्वास की सामान्य लंबाई 9 इंच है । संयम (मिताहार) से श्वास का निलंबन होता है । श्वास के निलंबन से मन की शांति उत्पन्न होती है जो अतींद्रिय ज्ञान पैदा करती है । …एक व्यक्ति अपनी वाह्य-श्वास की लंबाई को 6.75 इंच करने से कविता लिखने की शक्ति प्राप्त करता है…. 6 इंच से उसे भविष्य की घटनाओं का वर्णन करने की शक्ति प्राप्त होती है ….5.25 से वह दिव्य दृष्टि से धन्य हो जाता है ,वह दूर के संसारों में क्या हो रहा है उसको देख लेता है ।”
परमतत्व की अवधारणा पर भी दो खंडों में लेख हैं । लेख का आरंभ इन शब्दों से है – “धर्म और दर्शन में परमतत्व आकर्षक किंतु अति जटिल गूढ़ विषय है। जगत के लिए यह सदैव असाध्य है ।”
वास्तव में यह एक कठिन विषय है जिसको चित्रों द्वारा समझाने के लिए लेखक आई. के. तैमिनी की पुस्तक मैन गॉड एंड यूनिवर्स बधाई की पात्र है।
पत्रिका में थियोसॉफिकल सोसायटी की अनेक गतिविधियों को भी पाठकों को उपलब्ध कराया गया है ।पत्रिका का कवर रंगीन तथा आकर्षक है ।संपादक मंडल को बधाई ।

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