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25 Jan 2022 · 2 min read

तीज- त्यौहार को छोड़कर मैं शुभे! इस बियाबान में ठोकरें खा रहा||

#सरहद_पर_प्राणों_की_आहुति_देने_को_तत्पर_हमारे_वीर_सैनिकों को मेंरा कोटि-कोटि प्रणाम
_______________ #शब्दों_की_सलामी__________________
तीज- त्यौहार को छोड़कर मैं शुभे! इस बियाबान में ठोकरें खा रहा|

प्रेम का पुष्प हिय में हुआ था उदित,
राष्ट्र का प्रेम लेकिन प्रबल हो उठा|
छोड़ आलय, गगन, वात सब गाँव की,
देश हित मन सहन में सबल हो उठा|
ठान कर रार मैं प्रेम से अब शुचे!
एक इतिहास गढ़ने को तत्पर हुआ|
हाथ अपने लिए जान भी मान भी,
कर्म के मार्ग बढ़ने को तत्पर हुआ|

छोड़ कर दीप या रंग उत्सव सभी, गीत बलिदान का प्राणिके! गा रहा|
तीज – त्यौहार को छोड़कर मैं शुभे! इस बियाबान में ठोकरें खा रहा||

शीत की ये लहर हमको पुचकारती,
और देती कड़ी धूप छाया घनी|
मातुरूपी धरा जब दुलारे हमें,
नेह पाकर लगे हम हुये हैं धनी|
इस धरा के निहित प्राण अर्पित करें,
बस यही हैं हमारी मनोकामना|
प्राण निकले कफन वो तिरंगा मिले,
लालसा शत्रु दल का करूँ सामना|

छोड़ मखमल कि शैया यहाँ रेत ही, और कंकड़ व पत्थर हमें भा रहा|
तीज – त्यौहार को छोड़कर मैं शुभे! इस बियाबान में ठोकरें खा रहा||

प्रण किया सङ्ग तेरे रहूँगा शुभे!
इस शपथ को निभाया नहीं आज तक|
प्रेम को शब्द में घोलता बस रहा,
पर हृदय से लगाया नहीं आज तक|
मानता हूँ तुम्हारा गुनहगार मैं,
सरहदों पे पड़ा प्रीति से दूर हूँ|
राष्ट्र अपना सुरक्षित रहे सर्वदा,
इसलिये प्राणिके! मैं तनिक क्रूर हूँ|

रोष उर में लिए अम्ल तन को बना, शत्रुमर्दन को देखो मरा जा रहा|
तीज – त्यौहार को छोड़कर मैं शुभे! इस बियाबान में ठोकरें खा रहा||

है नवल एक इच्छा सुनो प्राणिके!
कर्म के पथ कभी धैर्य खोना नहीं|
देखकर शव तिरंगा लपेटे हुये,
अश्रु दृग में लिए आप रोना नहीं|
मुस्कुराकर विदा आप करना मुझे,
भाल चंदन लगा वल्लभा प्यार से|
पूर्ण करना यहीं लालसा है प्रिये!
धन्य होगा हृदय तेरे उपकार से|

कण्टको से भरा पंथ दुस्कर बहुत, चल रहा वक्ष पुलकित खुशी पा रहा|
तीज – त्यौहार को छोड़कर मैं शुभे! इस बियाबान में ठोकरें खा रहा||

✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’

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