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4 Jan 2022 · 1 min read

तुम मानस की चौपाई हो

मैं मई जून की तेज तपिश, तुम बासन्ती पुरवाई हो
मैं हूँ गीता सा महाग्रंथ, तुम “मानस” की चौपाई हो
मैं लोहे जैसा हूँ कठोर, तुम कोमल कंचन के समान,
मैं “प्रेमचंद्र” का उपन्यास, तुम प्रेम की आखर ढाई हो

~अभिनव मिश्र अदम्य

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