Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
19 Dec 2021 · 1 min read

" शरद ऋतु आई है "

“शरद ऋतु आई है”

दस्तक है हौली सी,
शरद ऋतु आई है।
बावरा सा मन है हुआ,
अजब तरुणाई है।।

रात हुई शबनमी सी,
चाँद की गवाही है।
बन पड़ी चकोर की,
क़िस्मत क्या पाई है।।

व्योम के ललाट पर,
लालिमा सी छाई है।
धुन्ध मेँ, कुहासे मेँ,
दे न कुछ दिखाई है।।

सूरज तो चढ़ आया,
गई ना ख़ुमारी है।
सिहरन जो सुबह की,
किरनों पे भारी है।।

स्वप्न हुए सतरँगी,
कल्पना की बारी है।
चाह के समन्दर पे,
पवन की सवारी है।।

घास के बिछौने पे,
धूप गुनगुनाई है।
भँवरे उन्मत्त से हैं,
कली शरमाई है।।

खेत भी प्रफुल्लित है,
गेहूँ की बुवाई है।
मन्द-मन्द, मन ही मन,
सरसों मुसकाई है।

वस्त्रों के बोझ से,
यौवन हुआ भारी है।
घाघरी भी सजनी की,
लम्बी, लहकारी है।।

मिलन से, बिछोह की,
आज भरपाई है।
“आशा” जगी है उर,
प्रीत की अँगड़ाई है।।

भोर से ही आज फिर ये,
याद किसकी आई है।
चुस्कियों मेँ चाय की बस,
दुनिया समाई है…!

##————##————##———–##

रचयिता-

Dr.asha kumar rastogi
M.D.(Medicine),DTCD
Ex.Senior Consultant Physician,district hospital, Moradabad.
Presently working as Consultant Physician and Cardiologist,sri Dwarika hospital,near sbi Muhamdi,dist Lakhimpur kheri U.P. 262804 M.9415559964

Loading...