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8 Nov 2021 · 3 min read

बेटी का घर

नवम्बर 5/2021,
2 रूम+स्टडी, फ्लैट
हरी नगर नई दिल्ली – 64

यहां मेरे प्रवास का अंतिम दिन, कल वापस जाना है। ये मेरी कर्तव्यनिष्ठ, स्नेही, दयालु, ममतामयी बेटी का घर है। कई बार आमंत्रित किया – ‘पापा जी आप लोग हमारे यहां आईये।’ जवाब दिया करता था -‘मौका मिलते ही जरूर आऊंगा’, और ये मौका मिला उसकी मां के न रहने के बाद।

मेरे सभी बच्चे विवाहित, वेल सैटेल्ड अपनी घर गृहस्थी में रमे, मै अपनी पत्नी के साथ गृह नगर के निजी आवास में जीवन के चौथे चरण का आनंद ले रहा था। अचानक मेरी प्रिय पत्नी की तबियत खराब हुई और कुछ ही दिनों में परलोक सिधार गयीं, अकेला रह गया। बच्चों को चिंता हुई ‘पापा जी अकेले कैसे रहेंगे ?’ सुझाव ये भी आया कि थोडे-थोडे दिन सभी के यहां रह लेगें, जिसे मैने अनसुना कर दिया। मेरा मन अपना घर ‘हमारा सपना’ जो अब यादों का संसार बन चुका है, को छोड कर कहीं और जाने का नहीं होता। काफी दिनो तक बहू बच्चों के सहित मेरे साथ रही और बेटा बाहर अपने जाब पर। ऐसा कब तक चलता ? बेटे ने तय किया कि पापा जी को साथ ले जाऊंगा, मेरे पास भी कोई विकल्प नहीं था। दिल्ली से लगे हरियाणा प्रदेश के हिसार मे बहू की बहन को प्रथम संतान हुई थी तो उसे वहां भी जाना था, हम सभी लोग घर से साथ निकले, बहू अपनी बहन के यहा, बेटा कोलकाता जाब पर चला गया और मै दिल्ली बेटी के घर पहुंच गया।

बेटी के घर कुछ दिनों के प्रवास के लिए आने से पहले सोंचा करता था कि बेटी तो अपनी है, पिता पुत्री मे स्नेह भी खूब है परन्तु दामाद जी क्या सोचेगे ? कैसा व्यवहार करेगें ? फिर बेटी के दो बच्चे भी तो है। अब जो भी हो जीवन के अनुभव का हिस्सा होगा, मान कर बेटी के घर रहने चला आया।

बेटी के पति केन्द्रीय सरकार मे अधिकारी, दो सयाने होते होनहार बच्चे, बडी बेटी सीनियर सेकेन्डरी के साथ आई आई टी के लिए भी तैयारी कर रही है छोटा बेटा सेकेन्डरी परीक्षा के लिए तैयारी कर रहा है। सब कुछ ठीक-ठाक, संभ्रांत नागरिक की तरह जीवन यापन, अच्छा लगा। घर पहुंचते ही शांत सौम्य तरीके से स्वागत हुआ जो मन को छू गया। मेरी बेटी है ही करुणामयी, हर जरूरत का ध्यान रक्खा पूरा प्रयास किया कि मै प्रसन्नचित्त रहू। दामाद जी ने भी मुझे पिता तुल्य समझकर समुचित सम्मान दिया। बच्चे रिजर्व रहे लेकिन किसी बात को अनसुना नही किया नाना जी के प्रति सदैव विनयावनत रहे। सम्पूर्ण प्रवास के दौरान यही एहसास होता रहा कि अपने घर मे अपनो के बीच रह रहा हू। अपने निजी आवास की याद नही आई ना ही पत्नी के न होने के गम ने सताया। कुल मिला के अनुभव सुखद रहा।

आज भाई दूज का दिन, बेटा बहू बच्चो के साथ एक दिन पहले ही आ गये थे, वापसी का रिजर्वेशन भी आज का ही है, दोपहर की गाडी। भाई दूज की रस्म पूरी हुई हम लोगो ने तैयारी कर ली। ट्रेन का समय हो रहा था टैक्सी का इंतजार था। मेरा अविभूत मन और बेटी से बिछडने का गम मुझे द्रवित कर रहा था। एक दिन पहले ही चलते समय बोलने वाले वाक्य सृजित कर लिए थे, परन्तु ये क्या ? आखे नम हुई, होठ जैसे चिपक गये, वाक्य विस्मृत हो गये, कुछ बोल न सका केवल हाथ जोडे और गाडी मे बैठ गया।
मन को तसल्ली जरूर थी कि अब बेटी दामाद को जमीन पर और नाती को सोफे पर नही सोना पडेगा।

स्वरचित मौलिक
अश्वनी कुमार जायसवाल कानपुर 9044134297

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