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27 Oct 2021 · 1 min read

'कुछ घाव'

कुछ घाव ऐसे होते हैं!
बाहर से अदृष्ट होते हैं,
पर भीतर छुपे होते हैं।
झूठ का मलहम लगाकर ,
हम उन्हें लुकोते हैं।
भरते नहीं जिन्दगी भर,
भार उनका हंसके ढोते हैं।
कुछ घाव ऐसे होते हैं,
संग जगते-सोते हैं।

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