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27 Oct 2021 · 1 min read

एक दीपक

स्वप्न नयनों में समय के पल रहा है
देहरी पर एक दीपक जल रहा है

देर तक मुंडेर पर जलते रहे जो
तिमिर से संघर्ष थे करते रहे जो

प्रज्ज्वलित होते रहे संकल्प-रथ पर
हो रहे प्रतिपल तिरोहित न्याय-पथ पर

उन दियों का भी समर्थन फल रहा है
देहरी पर एक दीपक जल रहा है

ओस का ओढ़े धरा परिधान है अब
पंछियों का मुक्त कलरव-गान है अब

केश लहराने लगे हैं अब उषा के
आगमन रवि का हुआ प्राची दिशा से

दर्प क्षण-क्षण में निशा का ढल रहा है
देहरी पर एक दीपक जल रहा है

झुक गया सारा गगन सम्मान में है
सिर नवाये सृष्टि स्तुति-गान में है

कौन तोड़ेगा अटल संकल्प उसका
क्या बिगाड़ेगा ‘असीम’ आतंक उसका

जो निरन्तर कर्म-पथ पर चल रहा है
देहरी पर एक दीपक जल रहा है

© शैलेन्द्र ‘असीम’

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