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16 Oct 2021 · 2 min read

शीर्षक:पर्वत पूजा

शीर्षक:पर्वत पूजा

भारत मे पूजा की अपनी ही परम्परा हैं जहां प्रकर्ति के सभी रूपो की कोई न कोई पूजा विशेषता हैं।पर्वत पूजा भी ऐसी ही परम्परा में आता हैं।मूलतः यह प्रकृति की पूजा है, जिसका आरम्भ श्रीकृष्ण ने किया था।इस दिन प्रकृति के आधार के रूप में गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है और समाज के आधार के रूप में गाय की पूजा की जाती है।यह पूजा ब्रज से आरम्भ हुई थी और धीरे-धीरे पूरे भारत वर्ष में प्रचलित हुई।
प्रकृति जीवन का आधार है। पेड़-पौधे और पशु-पक्षी ही मिलकर हमें आगे बढ़ने में सहायता प्रदान करते हैं. हिंदू धर्म में प्रकृति की महत्ता को दर्शाने के लिए कई पेड़ों और जानवरों को भगवान का दर्जा दिया गया है। हमारे धर्म मे प्रकर्ति पूजनीय हैं।इसी परंपरा को और भी आगे ले जाते हैं हमारे पर्व जैसे नाग पंचमी और गोवर्धन पूजा। आज मैं पर्वत पूजा अर्थात गोवर्धन पूजा के बारे में बात करती हूँ।
दीपावली के बाद कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा पर उत्तर भारत में मनाया जाने वाला गोवर्धनपूजा पर्व आज मनाया जाएगा।इसमें हिंदू धर्मावलंबी घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धननाथ जी की अल्पना (तस्वीर या प्रतिमूर्ति) बनाकर उनका पूजन करते है।इसके बाद ब्रज के साक्षात देवता माने जाने वाले गिरिराज भगवान [पर्वत] को प्रसन्न करने के लिए उन्हें अन्नकूट का भोग लगाया जाता है।
गोवर्धन पूजा से एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है। ऐसा माना जाता है कि एक बार भगवान श्री कृष्ण ने सभी गोकुल वासियों को इंद्र की पूजा करने के बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा करने की बात कह दी। भगवान श्री कृष्ण का कहना था कि तुम लोग देवराज इंद्र के बजाए इस गोवर्धन पर्वत की पूजा करो जिससे तुम्हारे पशुओं को चारा मिलता है।
गोवर्धन पर्वत बादलों को गोकुल के तरफ ही रोककर बारिश करवाता है जिससे तुम्हारी फसल अच्छी होती है। इसलिए तुम लोगों को गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए। लोगों ने भगवान श्री कृष्ण की बात मान ली और इंद्र के बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा करना शुरू कर दिया। देवराज इंद्र ने इसे अपना अपमान समझा और क्रोधित हो कर ब्रज वासियों पर भीषण वर्षा शुरू कर दी।
चारों तरफ लोग त्राहिमाम-त्राहिमाम करने लगे। भगवान श्री कृष्ण ने इंद्रदेव का अहंकार चूर करने के लिए सभी ब्रिज वासियों को गोवर्धन पर्वत के पास जाने को कहा और उन्होंने अपनी छोटी उंगली पर पूरे पर्वत को उठा लिया जिसके नीचे आकर सभी बृजवासी उस मूसलाधार बारिश से बच सकें। ऐसा माना जाता है कि तभी से गोवर्धन पूजा की प्रथा चली आई है।

डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद

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