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3 Oct 2021 · 1 min read

"हाइकु"

“हाइकु”
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कैसा ज़माना
ना है कोई ठिकाना
ख़्वाबों में डूबा ।

कोई इतना
परेशां क्यूॅं हो रहा
धीरज रखें ।

बमुश्किल ही
मंज़िल मिली हमें
दूर ना होंगे ।

ये महामारी
अत्यंत भयावह
संकट टला ।

शिक्षा व्यवस्था
चरमरा सी गई
कौन खुश है ??

उड़ता पंछी
उन्मुक्त गगन में
छटा निराली ।

निज संस्कृति
विलुप्त सी हो रही
कौन बचाए ??

आज का युवा
विकारों से ग्रसित
तरक्की कहाॅं ??

जान जो गए
जीने का फ़लसफ़ा
खुशियाॅं लौटी ।

भ्रमर गाए
कलियाॅं मुस्कुराए
फूल जो खिले ।

सावन मास
बारिश की फुहार
लाए बहार ।

अतीव वृष्टि
खिल गई प्रकृति
डूबी धरती ।

ठंडक आई
कंपकंपाते तन
दे दो रजाई ।

चुनाव आया
वोट किधर गया
नेताजी बोले ।

चुनाव बाद
हर कोई तबाह
महंगाई से ।

नदी किनारे
अद्भुत से नजारे
मस्त है फ़िज़ा ।

स्वरचित एवं मौलिक ।
सर्वाधिकार सुरक्षित ।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 03 अक्टूबर, 2021.
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