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21 Sep 2021 · 1 min read

जिंदगी रेत जैसे फिसलती गयी

प्यास जीने की ज्यों-ज्यों मचलती गयी।
जिंदगी रेत जैसे फिसलती गयी।
ख्वाब पूरे नहीं हो सके उम्र भर-
देह बचपन जवानी में ढ़लती गयी।

#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य

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