Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
23 Aug 2021 · 1 min read

गीत:- माॅं..…

जब भी तेरा मुझे स्मरण हो गया
आंसुओं से तभी आचमन हो गया

दर ब-दर खोजता हूॅं इधर और उधर
क्यों न मिलती मुझे छुप गई तू किधर
पागलों सा मेरा…… आचरण हो गया

चिड़ियां चहकें नहीं सूना मेरा अंगन
चांद तारों में ढूंढूं निहारूं गगन
रीता सारा जहां भारी मन हो गया

भूलता ही नहीं आंख नम हैं मेरी
जल रहा है वदन याद में अब तेरी
यादें समिधा बनी तो हवन हो गया

दर्द से जब कराहूॅं, पुकारूॅं तुझे
चैन मिलती नहीं क्यों तेरे बिन मुझे
थपकियां तूं न दे तो रुदन हो गया

मेरी माॅं जब से तेरा गमन हो गया
असुरक्षित मेरा आवरण हो गया
माॅं ही माॅं, मेरी माॅं, माॅं ही माॅं, मेरी माॅं
माॅं ही माॅं इक़ तेरा अब भजन, हो गया

✍अरविंद राजपूत ‘कल्प’

Loading...