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6 Aug 2021 · 4 min read

'वोअज़नबी मित्र'

‘वोअजनबी मित्र’
एक बार मैं ट्रेन से कहीं जा रही थी।रात का सफर था। एक युवक ट्रेन में चढा़।मेरे सामने वाला बर्थ था उसका।उस समय स्मार्ट फोन नहीं था।साधारण फोन थे। कुछ पत्रिकाएं आदि रखलेती थी सफर काटने के लिए। मेरे पास गृहशोभा पत्रिका थी। मैं उसे पढ़ रही थी।रात के आठ बजे थे।उस युवक के पास शायद कुछ नहीं था पढ़ने के लिए या वो पढ़ना नहीं चाहता था। रात को ट्रेन में बाहर भी कुछ नहीं दिखाई देता सो व्यक्ति ऊब ही जाता है जब अकेला हो।मैं पत्रिका पढ़ चुकी थी,अब मन नहीं था पढ़ने का। इसलिए मैंने पत्रिका बंद कर दी।वो युवक शायद इसी प्रतीक्षा में था कि कब मैं पढ़ना बंद करूँ और वो मुझ से बात करे।
उसने दोनों हाथ जोड़कर कहा,”नमस्ते जी”।
मैंने धीरे से गरदन झुकाकर नमस्ते का ज़वाब दिया।मुझे थोडा़ अटपटा जरूर लगा था उसका नमस्ते कहना। मैं उससे बात नहीं करना चाहती थी पर वो बोर हो रहा था शायद
या आदतन बातूनी था। उसने बात आगे बढा़ई , “क्या आप इस सफर में मेरी दोस्त बन सकती हो?” मैं निर्णय नहीं कर पा रही थी कि क्या जवाब दूँ।आखिर इस व्यक्ति का दोस्त बनने से क्या मतलब हो सकता है !क्यों दोस्ती करना चाहता है यह। मैंने कहा, मुझे अभी नींद आ रही है। मैं उसकी बात टालना चाहती थी।उसने कहा,-“अभी इतना ज्यादा समय कहाँ हुआ है! सोना तो मुझे भी है।बस थोड़ा समय अच्छे से कट जाएगा । मैं सोच रही थी ये दोस्ती करेगा फिर पता पूछेगा फिर फोन नंबर मांगेगा और कॉल करके परेशान करता रहेगा। इसलिए मैं उससे बात नहीं करना चाहती थी। मुझे बातें करना पसंद नहीं है, मैंने उससे कहा। अच्छा! क्यों? उसने हंसकर पूछा। मैंनें कहा,-“बस यूँ ही अपनी अपनी आदत होती है।”
ठीक है, मत बताइए वो बोला। इतने में खाने वाला आलू के परांठे लेकर आवाज़ लगा रहा था।उसने पूछा आपको क्या खाना पसंद है ?मैंने कहा,-“कुछ नहीं।” पर मुझे भूख लगी है , वो बोला।ट्रेन रुक गई थी ।आधे घंटे के लिए।चलिए बाहर कुछ खा लेते हैं,उसने मुझसे कहा ।नहीं मैं सामान नहीं छोड़ सकती,मैंने बर्थ पर लेटते हुए कहा। वो बाहर गया और समोसे और चाय लेकर आया।उसने खाने का आग्रह किया।पर मैंनें मना कर दिया।उसने भी समोसे नहीं खाए । मैंने कहा-“तुम खा लो।”उसने कहा, कि वो अकेले नहीं खाता। हमेशा दोस्तों के साथ ही खाता है। इसीलिए वो मुझे दोस्त बनाना चाहता है। वो बोला,आप नहीं खाएंगी तो मैं भी नहीं खाऊँगा। मैंनें कह दिया कि मुझे दोस्त बनाने का शौक नहीं है ।वो बोला मैं सिर्फ सफ़र में दोस्त बनाने की बात कर रहा हूँ, मुश्किल से एक दो घंटे बस। मैंने अनमने मन से समोसा और चाय पी ताकि पीछा छूटे। बस फिर वो मेरी हॉबीज पूछने लगा कि मुझे क्या-क्या पसंद है, देश विदेश के भ्रमण की कि मैं कहाँ-कहाँ घूमी और क्या-क्या अच्छा लगा आदि के बारे में बातचीत करता रहा। मुझे भी अच्छा लग रहा था बातचीत करना।पर मैंने उससे कुछ नहीं पूछा, बस जो-जो वो पूछता गया, मैं बताती गई। फिर उसने पूछा क्या आप डायरी लिखती हैं?
मैंने कहा, -“नहीं।” उसने मुझे अपनी डायरी दिखाई। उसमें हजारों नामों की सूची थी। कुछ नाम से थे कुछ जगह के नाम पर दिनांक ,वार और वर्ष सहित लिखे थे । उसने बताया वो जब कभी सफ़र करता है एक मित्र अवश्य बनाता है और उस मुलाकात को अपनी डायरी पर उकेर देता है।मैंने आश्चर्य से पूछा क्या तुम इतने मित्रों से बातचीत करते हो और मुलाकात करते हो! उसने कहा नहीं ,कभी नहीं।फिर क्यों बनाते हो इतने मित्र? मैंने पूछा।वो बोला मैडम मैं हर क्षण वर्तमान में जीता हूँ, नये मित्र बनाता हूँ पर बस उसी पल के लिए।जो हमेशा के लिए मित्र बना तो लेते हैं पर निभा नहीं पाते । क्योंकि परिस्थितियों के अनुरूप हम बेबस हो जाते हैं और दुखी होते रहते हैं। क्या फायदा फिर। आज आप भी मेरी डायरी का एक हिस्सा बन गई । अपने खाली समय में मैं डायरी के हर मित्र से मिलता हूँ और सुखद समृति में जी भर आनंद लेता हूँ।देखिए समय कितनी अच्छी तरह से बीत गया। रात्रि के 12 बजे थे। वो बोला मेरा स्टेशन आ गया है ।अब आप सो जाइए। नमस्ते जी!और बहुत बहुत धन्यवाद आप इस सफ़र में मेरी मित्र बनी। मुझे उस समय उसमें और उसकी बातों में कोई रुचि नहीं थी। वो अब भी मेरे लिए सिर्फ़ एक अज़नबी था। मैंनें उसकी बातों पर विशेष ध्यान भी नहीं दिया । और बर्थ पर लेट गई।
अपना सामान उठाकर वह ट्रेन से नीचे उतर गया था ।उसने मुझसे न नाम पूछा न पता ही पूछा और न फोन नम्बर। लेकिन मेरे मानस पटल पर वो एक छाप छोड़ गया था।वो बात आज भी तरोताज़ा है जैसे कल की ही बात हो।जब भी ट्रेन से कहीं जाती हूँ न जाने क्यों वो समृति सदैव मस्तिष्क में तैरने लगती है। अजीब इंसान था वो जिन्दगी में कभी कोई उस जैसा मैंने नहीं देखा।कुछ घटनाएं मन में इतनी गहराई तक उतर जाती हैं कि कितना भी लंबा समय क्यों न बीत जाए, नई ही लगती हैं। वो अजनबी कुछ पल के मित्र को मैं आज भी नहीं भूली हूँ।
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