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20 Jul 2021 · 1 min read

अंतहीन सफर

चले जाना है अंतहीन सफर पे
सभी को स्मृतियां भेंट देकर
नियति यही है गर जन्म लिया है
सांसे तो ठगिनी हैं
अपने मन की करती हैं
कर्मों कि छवि काया बन कर रह जाती है
देह दिवंगत हो जाता है
विचार विचरण करते रहते हैं
विचार चिरायु होते हैं
सुख़ दुःख मंत्रणा करते रह जाते हैं
और हम फिर से सब कुछ भूल कर निकल पड़ते हैं अपने सफ़र पे
स्मृतियां बटोरने !!

– विवेक जोशी ”जोश”

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