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13 Jun 2016 · 1 min read

मुक्तक

मेरा दूसरा मुक्तक-

अन्याय हँसे खुलकर, ये न्याय अदालत है,
निर्दोष सज़ा पाते, खूनी को’ रियायत है।
धृतराष्ट्र बने बैठे, संसद के’ सभी आका,
बस चोर डकैतों की , बेशर्म सियासत है।

दीपशिखा सागर-

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