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1 Jun 2021 · 1 min read

इक दूजे की बोटी हम नुचवाते हैं।

सेंक रहे वे रोटी हम सिंकवाते हैं।
इक दूजे की बोटी हम नुचवाते हैं।

सदियों से कुछ सीख नहीं ले पाए हैं।
सदियों से एक भूल वही दोहराए हैं।
बटें हुए हैं भिन्न समूहों के दल में।
एक रहें कैसे यह समझ न पाएं हैं।
अपनो को अपनो में शामिल न करते।
विश्व एक है गला फाड़ चिल्लाते हैं।

सेंक रहे वे रोटी हम सिंकवाते हैं।

तुर्को, अफगानों,मुगलों ने पीटा है।
सदियों तक पश्चिम ने हमको लूटा है।
लुटने पीटने में है हमें मज़ा आता।
मुझको नहीं लगे नुक्ता यह झूठा है।
न्योत के अपनी ही धरती पर यवनों को।
स्वयम ही अपनी गर्दन हम कटवाते हैं।

सेंक रहे वे रोटी हम सिंकवाते हैं।

सिमट सिमट कर सिमट गए हैं भारत में।
फिर भी कोई फर्क नहीं है हालत में।
अब भी फिरते ऊँच नीच की माया में।
रत्ती भर भी कमी नहीं है स्वारथ में।
छूत अछूत की कीचड़ में हैं सने हुए।
कनक है काया गर्व से लेकिन गाते है।

सेंक रहे वे रोटी हम सिंकवाते हैं।

बीजेपी हो सपा, कॉंग्रेस, बसपा हो।
हरा रंग हो चाहे खिलता भगवा हो।
हिंदु तेरी किस्मत में तो है घात लिखा।
हो नीतीश, मोदी, राहुल या ललुवा हो।
आईना क्यों इन्हें नहीं दिखला पाते।
टूट के हम ही क्यों टुकड़े बन जाते हैं।

सेंक रहे वे रोटी हम सिंकवाते हैं।

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