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26 May 2021 · 3 min read

टेम्पल रन।

पुनः एक बार भीषण पराजय के सागर में गोते खाते हुए चिरयुवा अध्यक्ष दीन हीन अवस्था में सोफे पर पसरे हुए थे। उनके मासूम सुंदर मुखड़े पर ईर्ष्या , छोभ , निराशा के भाव तांडव नृत्य कर रहे थे।उनकी इस अवस्था को देख कर उनकी माँ को अपार कष्ट हो रहा था। अंततः अपने कष्टों पर नियंत्रण रख वे अपने पुत्र के समीप आईं और उसके तनिक घुंघराले केशों में अपनी उंगलियां फिराते हुये बोलीं :
क्या हुआ पुत्र इतने दुःखी क्यों हो , यही तो जीवन है। इसमें हार जीत तो लगी रहती है।

पुत्र : माँ आपने मेरे साथ अच्छा नहीं किया।

मां संतप्त स्वर में : क्या कह रहे हो पुत्र , मैंने तुम्हारे साथ क्या गलत किया ?

पुत्र : बड़े होकर जो बच्चों को करना है उसकी सीख बचपन से ही देनी चाहिए। समय गुजर जाने के पश्चात सीखने में बड़ा कष्ट होता है।

मां की समझ में नहीं आया कि पुत्र क्या कहना चाह रहा है। उन्होंने पुत्र के चेहरे पर एक गहरी दृष्टि डाली ताकि कुछ सूत्र हाथ लग सकें जिससे उसकी बात की परतों को खोला जा सके। पुत्र की दृष्टि सामने वाली दीवार पर लगे एक चित्र पर टिकी थी , जिसमें एक युवा स्त्री अपने दो बच्चों के साथ परम आनन्द के भाव में थी। माँ का मुखड़ा थोड़ा रक्तिम हो उठा। उसे पुत्र की व्यथा समझ में आ गयी साथ ही साथ उसके भोलेपन पर प्रेमयुक्त हल्का क्रोध भी आया।

माँ : अच्छा तो इस बारे में बात कर रहे हो , आजकल तो नेट का जमाना है , छोटे छोटे बच्चे भी सब कुछ जानते हैं और तुम अब भी ! क्या तुम्हारी कोलंबियन महिला मित्र ने भी कुछ नहीं सिखाया। फिर उसके साथ छुट्टियों में क्या करने जाते थे ?

पुत्र पहले तो अचकचा गया कि माँ ये क्या कह रही है फिर संयमित होकर कुछ बोलने चला कि माँ ने उसे टोक दिया।

माँ : तुझे कुछ चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। मैं तुम्हारे लिए एक ऐसी लड़की लेकर आऊंगी जो तुम्हे सब सिखा देगी।

पुत्र झुंझलाते हुए : जो आप सोच रही हैं ऐसा कुछ भी नहीं है। मैं उस बारे में बात नहीं कर रहा।

माँ : फिर ?

पुत्र : मैं टेम्पल रन के बारे में बात कर रहा हूँ।

माँ : अब ये टेम्पल रन वाल गेम बीच में कहाँ से आ गया ?

पुत्र : आपने मुझे बचपन में कभी नहीं सिखाया की पूजा अर्चना कैसे की जाती है , क्यों की जाती है , अब जैसे ही चुनाव आते हैं , मुझे मंदिर मंदिर दौड़ लगानी पड़ती है, ऊपर हिमालय से लेकर सुदूर दक्षिण तक , मैं पूरा जोर लगाकर दौड़ता हूँ और जब परिणाम आते हैं तो वही होता है जो टेम्पल रन गेम में होता है। मैं हर बार हार जाता हूँ।एक बड़ा सा दैत्य झपट कर मुझे पकड़ लेता है और मैं हर मानने और कसमसाने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं लड़ पाता।

माँ : इस तरह नैराश्य भाव ग्रहण करोगे तो काम कैसे चलेगा पुत्र , राजनीति तुम्हारे DNA में है , तुम्हारी शिराओं में रूधिर बनकर बह रही है , वह दिन दूर नहीं जब तुम विजय पथ पर अपनी पताका फहराओगे।

पुत्र : यदि ऐसा है तो मुझे अपने DNA और रूधिर की जांच फौरन करवा लेनी चाहिए क्योंकि जिस गति से मैं सीख रहा हूँ उससे तो ये अंदेशा है कि यह जीवन कम पड़ेगा।

माँ : ये क्या कह रहे हो पुत्र , प्रिय पुत्र ऐसी बातें कर अपनी मां का हिर्दय मत दुखाओ।

पुत्र ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और कमरे से बाहर निकल गया अब वो कहीं घूमने गया है या अपने DNA और रूधिर की जाँच करवाने ये पता नहीं।

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