Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
18 May 2021 · 1 min read

मैं अनजाना परदेशी हूँ

मै आवारा परदेशी हूँ, मेरा नही ठिकाना रे
ओ मृग नयनों वाली सुनले, मुझसे दिल न लगाना रे

जब तीर नज़र का किसी ज़िगर
को पार कभी कर जाता है
प्यार मुहब्बत में बेचारा
नही चैन फिर पाता है
घुट-घुट फिर जीना होता है, पड़ता अश्क़ बहाना रे
ओ मृग नयनों वाली सुनले, मुझसे दिल न लगाना रे

इस दिल का उस दिल से कोई
नाता जब जुड़ जाता है
तब इक पल की दूरी करना
भी मुश्किल पड़ जाता है
मैं परदेशी मुझे कभी घर, होगा वापस जाना रे
ओ मृग नयनों वाली सुनले, मुझसे दिल न लगाना रे

वापस घर जब मैं जाऊंगा
अपने नेक इरादों से
तब तुमको दर्द मिलेगा कितना
उन कसमो उन वादों से
सूना-सूना ये दिल होगा, जग होगा वीराना रे
ओ मृग नयनों वाली सुनले, मुझसे दिल न लगाना रे

अभिनव मिश्र अदम्य

Loading...