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17 May 2021 · 1 min read

सवेरे का सूरज

सुबह का सूरज मेरे लिए हर रोज़ एक नई उमंग के साथ आता है।
उगते सूरज को देखकर मन में बहुत सी उमंगे भी जाग जाती है।
और दिन भर की भाग दौड़ के बाद ढलते सूरज के
साथ ये उमंगे भी अस्त हो जाती है।
बहुत कुछ है मन के भीतर जिसे मैं जगाना नहीं चाहती,
मन का वो कमरा मैं बस बंद ही रखना चाहती हूँ।
इसी लिए आज से मैंने तय किया है कि इस उगते सूरज को देखकर ही
आज से मैं नई शुरुआत करूंगी। अब किसी के प्रेम भाव में नहीं बहूंगी।
और ना कि किसी के लिए अपने दिल में जगह बनने दूंगी ,
जो प्यार का मोह सिर्फ दर्द देता है ।
हाँ अब मैं अपने लिए मतलबी बनूंगी।
वो होते है ना कुछ लोग मतलबी जो सिर्फ अपने भले के लिए ही सोचते है,उन्हें दूसरों से कोई अपेक्षा नहीं होती जो कम में ही अपना काम चला लेते है , उस तरह की मतलबी बनूंगी।
अब मैं मेरी कहानी में किसी और की हिस्से दारी नहीं होने दूंगी। अब मैं अपने लिए जियूंगी, सिर्फ और सिर्फ अपने लिए ही बस ।

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