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10 May 2021 · 1 min read

मुक्तक

देखता हूँ कितनी रक़ीब है दुनिया,
मुझमें मौज़ूद है और दूर है दुनिया,
सूरज बनकर बैठा है जो मेरे अंदर,
कर रहा वही चकनाचूर है दुनिया,

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