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28 Apr 2021 · 1 min read

रोग लगा रोग लगा --- मनहरण घनाक्षरी

रोग लगा रोग लगा, प्रेम का जो रोग लगा।
भगा भगा मैं तो दर ,लेने चला आया हूं।।
दिल लाया दिलदार,कर मेरा ऐतबार।
तोड़ लाज की दीवार, लेने चला आया हूं।।
नहीं प्यार में है डरना, करना प्यार करना
है साथ जीना मरना, लेने चला आया हूं।।
दोनों साथ ही रहेंगे, अपनों से भी कहेंगे।
न दूरी प्यार में सहेंगे,लेने चला आया हूं।।
****””*”””””””””””******************!
बसा प्यार में संसार,माने प्यार कहां हार।
बार बार प्यार ने तो, सबको सिखाया हे।।
इसे जिसने सताया, चैन उसने न पाया।
आने जाने वालों ने भी,सबको बताया हे।।
प्यार करो ऐसा करो,प्यार से कभी न डरो।
चले प्यार से जमाना,मैंने भी तो गाया है।।
रंग प्यार के निराले,अंग अंग में बसालें।
उमंग तरंग प्यार, खुद को रमाया है।।

कवि — राजेश व्यास अनुनय

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