Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
29 Mar 2021 · 3 min read

कुंडलियाँ

कुंडलियाँ ??

1
धारा में बहते रहे, चले भेड़िया चाल।
ऐसे में किसका हुआ, जग में ऊँचा भाल।।
जग में ऊँचा भाल, करेगा ‘आगे होना।’
चाहे जो हो जाय, न अपनी हिम्मत खोना।।
ऐसा करना कार्य, कार्य कर दे उजियारा।
दुनिया भर में आप, बहाएं नूतन धारा।।

2
साधारण अवधारणा, बहे हवा अनुकूल।
पर अपनी है धारणा, धारा हो प्रतिकूल।।
धारा हो प्रतिकूल, चढ़ो मछली के जैसे।
बिना किये संग्राम, सफलता पाओ कैसे।।
इसीलिये अनिवार्य, उच्च कर दो उच्चारण।
होने दो जयघोष, नहीं हो तुम साधारण।।

3
धारा के प्रतिकूल से, रखना हरदम प्रीत।
अगर चाहते हो तुम्हें, मिले महत्तम जीत।।
मिले महत्तम जीत, जीत का अपना मानी।
दुनियाभर के आप, बनोगे दिलबर जानी।।
अगर मिले जब हार, कहेगी दुनिया हारा।
नहीं बने इतिहास, निगल जाएगी धारा।।

4 वादा

वादा जब कर ही लिया, तब तुम बोलो वाह।
वाह वाह की आप सब, फैला दो अफवाह।।
फैला दो अफवाह, हवा में कर दो फायर।
बाहर बाहर यार, बना दो अंदर डायर।।
दुनियाभर में शोर, मचा है हद से ज्यादा।
वादों के सरताज, करेंगे झूठा वादा।।

5 डोली

डोली में बिटिया चली, जब साजन के द्वार।
मातु, पिता, भाई, बहन, सबके सब बेजार।।
सब के सब बेजार, रिवाजों की ये दुनिया।
सोच रहा परिवार, रहेगी कैसे मुनिया।।
मन कहता हर बार, हमारी बिटिया भोली।
रुदन करें घर द्वार, बिदा होती जब डोली।।

6
जाड़े की औकात- कुंडलियाँ

जाड़ा ज्यादा अकड़ता, मकड़ रहा हर बार।
पकड़ टेटुवा तुम उसे, निश्चित देना मार।।
निश्चित देना मार, मार का वो है आदी।
बिना मार के यार, करेगा वो बर्बादी।।
जाड़े का साम्राज्य, मिटाने होओ थाड़ा।
बतला कर औकात, मिटा डालो तुम जाड़ा।।

7
ताले में रखते रहे, नोट हजार करोड़।
निश्चित जाना ही पड़े, अंत समय में छोड़।।
अंत समय में छोड़, स्वार्थकारक ये फंडा।
बिना किये परमार्थ, मिलेगा गोला अंडा।।
दया दान का पान, मजे से आप चबाले।
संचित करके पुण्य, कृपणता पर कर ताले।।

8

सीधे सच्चे लोग तो, हो जाते गुमनाम।
राजनीति उनके लिये, जो होते बदनाम।।
जो होते बदनाम, कार्य जो करते गंदे।
बनते हैं सरताज, करे नाजायज धंधे।।
उल्टी जग की रीत, बुरे अब सबसे अच्छे।
कलमकार हैरान, करे क्या सीधे सच्चे।।

9

विनती इस अध्याय का, पन्ना देना फाड़।
क्रूर कलंकित कृत्य को, जिंदा देना गाड़।।
जिंदा देना गाड़, याद मत करना इसको।
नहीं सुखद इतिहास, करें जो मिलके डिस्को।।
चीरहरण व्यभिचार, आज की उल्टी गिनती।
इस पर करना नाज, नहीं ये हमरी विनती।।

10
कुंडलियाँ छंद*

विषय- पैसा हो या वाह

पैसे से ही हो गये, निपट मूर्ख सरताज।
ये करती दुनिया सदा, पैसों पर ही नाज।।
पैसों पर ही नाज, कहो मत उनके नखरे।
बहते देखा धार, कटे जो बलि के बकरे।।
दौलत हो या वाह, कहो दोनों इक जैसे।
द्वंद दम्भ पाखण्ड, वाह या समझो पैसे।।

या

पैसे कैसे हो गए, दुनिया में सरताज ।
करती दुनिया क्यों मगर, पैसों पर ही नाज ।।
पैसों पर ही नाज, राज इसके विध्वंसक ।
झूठे बने गवाह, छीन लेते सच के हक ।।
दिल में होता और, जुबां स्वर बदले कैसे।
राह सुझाते संत, चाहते वे भी पैसे।।

या

पैसा ही पागल करे, पागल कर दे वाह।
लाखों दुनिया में यहां, झूठे बने गवाह।।
झूठे बने गवाह, करादे नाहक दंगा।
बिना वाद जज्बात, कराते पागल पंगा।।
कहे सरल मतिमन्द, यहां पर होता ऐसा।
दम्भ दिखाता वाह, घमंडी करता पैसा।।

या

पैसा की या वाह की, हमें नहीं दरकार।
दुनिया मे हम चाहते, रहे सभी में प्यार।।
रहे सभी में प्यार, यही जिन्दे का मतलब।
करो सुखद व्यवहार, यहाँ पर मरते दम तक।।
कहे सरल हथजोड, सोच मत ऐसा वैसा।
करो मनः विश्वास, नहीं है बढ़कर पैसा।।

या

पैसा से या वाह से, नहीं बचा है मोह।
अंध कूप हैं ये सभी, मूल्यों के अवरोह।।
मूल्यों के अवरोह, करे क्यों इनकी पूजा।
कान पकडकर आज, कहें मत इनसा दूजा।।
भरी हवा को मान, वाह गुब्बारे जैसा।
पैदा करते रार, रहा गर ज्यादा पैसा।।

या

पैसा हो या वाह हो, पैदा करते आह।
सम्बन्धों के वस्त्र को, करने वाले स्याह।।
करने वाले स्याह, स्वाह करते अंतर्मन।
इसीलिये विश्वास, नहीं करता इन पर मन।।
सरल कवि की राय, करो मत ऐसा वैसा।
पैदा करते खार, वाह हो या हो पैसा।।

साहेबलाल सरल

Loading...